पिछले दिनों जयपुर के एक अतिरिक्त सत्र न्यायालय ने आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से संबंध रखने वाले आठ सदस्यों को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई तथा इसके साथ ही प्रत्येक अभियुक्त पर 11-11 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। इन आतंकियों पर आरोप थे कि यह जेल में रहते हुए सीमा पार पाकिस्तान तथा भारत की दूसरी जेलों में बंद अपने साथी आतंकियों से फोन पर संपर्क साधा करते थे। अदालत ने इस मामले में पूरी गंभीरता दिखाते हुए जोधपुर,बीकानेर,नाभा तथा पटियाला जेल के उन तत्कालीन जेल अधीक्षकों व जेलर्स पर भी कार्रवाई की मंशा जताई है जिनके कार्यकाल में इन जेलों में बैठे आतंकवादी दूर संचार सुविधा का लाभ उठाते हुए जेल के बाहर,दूसरी जेलों में या सीमा पार के अपने आकाओं से संपर्क साधा करते थे। जिन आरोपियों को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई है उनमें क़बील खां,बाबू उर्फ निशाचंाद अली,शकूरउल्ला,मोह मद इकबाल, हाफिज़ अब्दुल मजीद तथा असगर अली नामक 6 आरोपी मुस्लिम समुदाय से संबधित हैं वहीं दो आरोपी पवन पुरी व अरूण जैन का संबंध हिंदू समुदाय से है।
ज़ाहिर है चूंकि यह निचली अदालत द्वारा सुनाया गया फैसला है लिहाज़ा आरोपियों द्वारा उच्च अदालतों का दरवाज़ा भी ज़रूर खटखटाया जाएगा। उच्च अदालतों के फैसले क्या होंगे यह तो भविष्य में पता चलेगा परंतु फिलहाल जयपुर के अतिरिक्त जि़ला जज-17 श्री पवन कुमार की अदालत ने अपने फैसले के साथ एक महत्वपूर्ण टिप्पणी दी है उसका जि़क्र करना बेहद ज़रूरी है। अदालत को बचाव पक्ष की ओर से बताया गया कि इनमें से एक अभियुक्त अब्दुल मजीद मदरसे में पढ़ाता है तथा हाफिज़-ए-कुरान है। उसकी ओर इशारा करते हुए अतिरिक्त सेशन जज पवन कुमार ने अपने आदेश में लिखा कि-‘कोई भी धर्म या धार्मिक ग्रंथ हिंसा कर निर्दोषों की जान लेने को नहीं कहता। कुरान एक पवित्र ग्रंथ है जिसके अध्ययन और अमल करने के बाद कोई मूर्ख व्यक्ति भी ऐसी आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त होने की सोच भी नहीं सकता। यदि अभियुक्त $कुरान की एक $फीसदी बात पर भी अमल करता तो आतंकवाद में लिप्त नहीं होता। ऐसा व्यक्ति ही कुरान और मदरसा को बदनाम करता है’।
माननीय अतिरिक्त सेशन जज पवन कुमार की यह टिप्पणी अपने-आप में कई आयाम दर्शाती है। एक तो यह कि जज साहब गैर मुस्लिम होने के बावजूद पवित्र कुरान शरीफ,उसकी शिक्षाओं तथा उसके वास्तविक मानने वालों के प्रति किस कद्र आश्वस्त हैं कि उनका पूरा विश्वास है कि कुरान शरीफ को पढऩे व मानने वाला आतंकवाद जैसी गतिविधियों में शामिल ही नहीं हो सकता। दूसरी ओर एक ऐसा व्यक्ति जो स्वयं को हाफिज़-ए-कुरान भी कह रहा हो और वह मदरसे का शिक्षक भी हो और इतनी पवित्र व धार्मिक जि़ मेदारियां निभाते हुए भी वह आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त पाया जाए,इस्लाम धर्म का इससे बड़ा दुर्भाग्य व मुस्लिम समाज पर इससे बड़ा कलंक और क्या हो सकता है? इस फैसले के बाद एक बार फिर यह सोचने की ज़रूरत है कि आखिर इस्लाम व मुसलमान के नाम पर तथा स्वयं को सच्चा मुसलमान व अपने समुदाय को सच्चा इस्लाम बताने की प्रतिस्पर्धा में आतंक का खूनी खेल कब तक चलता रहेगा? क्या जो बात सेशन जज पवन कुमार कुरान शरीफ व इस्लामी शिक्षाओं के बारे में समझ पा रहे हैं वह साधारण सी बात तथाकथित इस्लामी स्कॉलर्स की समझ में नहीं आती? बावजूद इसके कि मुसलमान से दिखाई देने वाले और सर पर टोपी,चेहरे पर खुदा का नूर(दाढ़ी)और कंधे पर अरबी तजऱ् का स्कार्फ रख लेना,घुटने के नीचे तक का कुर्ता और पैर के टखऩे से ऊपर तक का पायजामा पहन लेना ही एक सच्चा मुसलमान होने की पहचान है? गोया एक सच्चा मुसलमान देखने में मुसलमान होना ज़रूरी है या उसका दिल से,अंतर्रात्मा से और वास्तविक इस्लामी शिक्षाओं का पालन करते हुए इस्लाम धर्म पर चलना ही सच्चा मुसलमान कहलाना है?
इस बात को बार-बार दोहराने की ज़रूरत नहीं कि भारतवर्ष में सक्रिय दक्षिणपंथी हिंदूवादी शक्तियों सहित पूरी दुनिया खासतौर पर पश्चिमी देशों का एक बड़ा वर्ग इस्लाम धर्म को निशाने पर लिए हुए है। इस्लामी आतंकवाद शब्द इसी सुनियोजित अंतर्राष्ट्रीय साजि़श का एक हिस्सा है। बावजूद इसके कि जयपुर में सज़ा पाए आठ आतंकियों में दो आतंकी हिंदू भी हैं। इन दो आतंकियों के अतिरिक्त औरभी सैकड़ों आतंकवादी जो हिंदू धर्म से संबंध रखते हैं आज भी भारत की विभिन्न जेलों में बंद हैं। यहां तक कि इनमें कई आतंकी तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से भी संबंधित हैं। परंतु आप इन लोगों को आतंकवाद के साथ जोडक़र हिंदू आतंकवाद या हिंदू आतंकवादी शब्द का प्रयोग नहीं कर सकते। अन्यथा यही दक्षिणपंथी चीखना चिल्लाना शुरु कर देंगे जोकि सुबह से शाम तक सैकड़ों बार इस्लामी आतंकवाद,इस्लामी जेहाद तथा लव जेहाद जैसे शब्दों का प्रयोग करते रहते हैं। निश्चित रूप से आतंकवाद न तो हिंदू धर्म की शिक्षा हो सकती है न ही इस्लाम धर्म की। आज यदि हम हिंदू धर्म में जो भी सकारात्मक देखते हैं वह हमें मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के त्याग,प्राणियों के प्रति उनका प्रेम,उनका सरल स्वभाव तथा उनकी कठिन तपस्या हमारे लिए प्रेरणा का माध्यम होती है। इसी प्रकार इस्लाम धर्म हज़रत मोह मद,हज़रत अली व हज़रत इमाम हुसैन जैसे इस्लाम धर्म के स्तंभ समझे जाने वाले त्यागी महापुरुषों से प्रेरणा हासिल करने वाला धर्म है न कि यज़ीद या फिरऔन जैसे क्रूर व अहंकारी शासकों के पदचिन्हों पर चलने वाला धर्म।
आदरणीय जज पवन कुमार ने बिल्कुल सही फरमाया कि कुरान शरीफ की एक प्रतिशत बात पर अमल करने वाला भी आतंकवाद में लिप्त नहीं हो सकता। निश्चित रूप से कुरान शरीफ समस्त प्राणियों यहां तक कि पेड़-पौधों पर भी दया दृष्टि रखने की हिदायत देता है। इस्लाम धर्म में तो अन्न पर पैर डालना,धरती पर चोट पहुंचाना,पेड़-पौधों को अनावश्यक रूप से काटना,निरीह पशुओं पर अत्याचार करना सबकुछ अधर्म की श्रेणी में बताया गया है। इंसान के कत्ल के बारे में तो कुरान शरीफ यहां तक कहता है कि यदि-‘तुमने किसी एक बेगुनाह का कत्ल कर दिया तो गोया तुमने पूरी इंसानियत की हत्या कर दी’। कुरान शरीफ के इस संदेश के बावजूद यदि कोई संगठन या व्यक्ति इस गलतफहमी में हत्याएं करता-कराता फिरे कि वह जो कुछ कर रहा है वह इस्लाम धर्म की रक्षा के लिए या इस्लाम धर्म के हक में ऐसा कर रहा है तो निश्चित रूप से ऐसा व्यक्ति कुरान शरीफ व इस्लामी शिक्षाओं का ही दुश्मन है। ठीक उसी तरह जैसे कि हिंदू धर्म के नाम पर या भगवान राम व कृष्ण के नाम पर हमारे देश में दक्षिणपंथी ताकतें भारतीय समाज में विघटन पैदा कर सत्ता हथियाने का खेल खेल रही हैं। जैसे इस्लाम धर्म या कुरान शरीफ बेगुनाहों की हत्याओं की इजाज़त नहीं देता वैसे ही कोई भी धर्म इस बात की इजाज़त नहीं देता कि वह अपने राजनैतिक एजेंडे को पूरा करने के लिए भगवान राम,भगवान कृष्ण,गाय,गंगा,लव जेहाद जैसे विषयों को सनसनीखेज़ बनाकर बेगुनाह व कमज़ोर लोगों पर सामूहिक रूप से आक्रमण करता फिरे या उनकी हत्याएं करता फिरे। निश्चित रूप से कोई भी धर्म हिंसा तथा नफरत के लिए अपने अनुयाईयों को प्रेरित नहीं करता।
लेखक :तनवीर जाफरी