आर्थिक सुस्ती के मुद्दे पर एक ओर जहां सरकार को उद्योग पतियों के साथ-साथ राजनीतिक दलों के सवालों का सामना करना पड़ रहा है तो वहीं उनके अपने नेता भी उनकी मुसीबत बढ़ाने में लगे हुए हैं।
सोमवार को संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान भारतीय जनता पार्टी के सांसद निशिकांत दूबे ने सकल घरेलु उत्पाद यानी GDP के कम होने का बचाव करते हुए कुछ ऐसी बात कही जो उन्हीं की पार्टी के लिए मुसीबत बन सकती है।
लोकसभा में सोमवार को NSSO द्वारा जारी किए गए हालिया GDP आंकड़ों पर हो रही चर्चा के दौरान निशिकांत ने कहा कि ‘जीडीपी 1934 में आया, इससे पहले कोई जीडीपी नहीं था, केवल जीडीपी को बाइबल, रामायण या महाभारत मान लेना सत्य नहीं है और भविष्य में जीडीपी का कोई बहुत ज्यादा उपयोग भी नहीं होगा।’
दूबे ने कहा कि ‘आज की नई थ्योरी है कि सतत आर्थिक कल्याण आम आदमी का हो रहा है की नहीं हो रहा है। जीडीपी से ज्यादा जरूरी है कि सतत विकास हो रहा है कि नहीं हो रहा है।’
सरकार के विभिन्न प्रयासों के बावजूद अर्थव्यवस्था नरमी के दलदल में फंसी हुई है। शुक्रवार को जारी आंकड़ों के अनुसार विनिर्माण क्षेत्र में उत्पादन घटने और निजी निवेश कमजोर होने से आर्थिक वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में घटकर 4.5 प्रतिशत पर आ गयी। यह आर्थिक वृद्धि का छह साल का न्यूनतम आंकड़ा है।
वहीं दूसरी तरफ आठ बुनियादी उद्योगों का उत्पादन अक्टूबर में 5।8 प्रतिशत घटा। यह कम-से-कम 2005 के बाद से सबसे बड़ी गिरावट है।
शुक्रवार को जारी आधिकारिक आंकड़े के अनुसार एक साल पहले 2018-19 की इसी तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर 7 प्रतिशत थी। वहीं चालू वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में यह 5 प्रतिशत थी।
जीडीपी वृद्धि में गिरावट की बड़ी वजह विनिर्माण क्षेत्र में उत्पादन में 1 प्रतिशत की गिरावट का आना है। वित्त वर्ष 2019-20 की जुलाई-सितंबर तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर का आंकड़ा 2012-13 की जनवरी-मार्च तिमाही के बाद से सबसे कम है।
उस समय यह 4.3 प्रतिशत रही थी। यह लगातार छठी तिमाही तिमाही है जब आर्थिक वृद्धि दर धीमी पड़ी है। वर्ष 2012 के बाद ऐसा पहली बार हो रहा है।