नई दिल्ली : पर्यावरण को लेकर तत्काल बड़े कदम उठाए जाने की जरूरत है। ऐसा इसलिए क्योंकि 153 देशों के 11 हजार वैज्ञानिकों ने जलवायु आपातकाल की घोषणा कर दी है। इन्होंने चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर पर्यावरण के लिए तुरंत काम नहीं किया गया तो अनकही पीड़ा का सामना करना पड़ सकता है।
ये बात इन वैज्ञानिकों ने बायोसाइंस मैग्जीन में प्रकाशित रिसर्च रिपोर्ट में कही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि एक टिकाऊ भविष्य के लिए हमें जीने के तरीके में बदलाव लाना होगा। इस रिपोर्ट में इन्होंने कहा है, ‘ये वैज्ञानिकों का नैतिक दायित्व है कि वह किसी भी ऐसे संकट के बारे में लोगों को आगाह करें, जिससे अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा हो।’ इन वैज्ञानिकों ने जलवायु आपातकाल की घोषणा पर हस्ताक्षर भी किया है।
वैज्ञानिकों की इस रिसर्च का नेतृत्व ओरेगॉन स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता विलियम रिपल और क्रिस्टोफर वुल्फ ने किया है। इन्होंने रिपोर्ट में लिखा है, ‘वैश्विक जलवायु वार्ता के 40 साल होने के बावजूद भी हमने अपने कारोबार को जारी रखा है। और इस विकट स्थिति को दूर करने में विफल रहे हैं।’ वैज्ञानिकों ने कहा है कि जलवायु संकट आ चुका है और यह उम्मीद से कहीं अधिक बढ़ता जा रहा है।
इस संकट से निपटने के लिए वैज्ञानिकों ने छह बड़े कदम उठाने का सुझाव दिया है। इनमें जीवाश्म ईंधन की जगह उर्जा के अक्षय स्रोतों का इस्तेमाल, मीथेन गैस जैसे प्रदूषकों के उत्सर्जन को कम करना, धरती के पारिस्थितिकी तंत्र को सुरक्षित करना, पौधे आधारित भोजन का इस्तेमाल करना और जानवर आधारित भोजन कम करना, कार्बन मुक्त अर्थव्यवस्था को विकसित करना और जनसंख्या को कम करना शामिल है। इन्होंने कहा है कि धरती गर्म होती जा रही है और ये इंसान के नियंत्रण से बाहर हो चुकी है।
वैज्ञानिकों ने कहा है कि हाल के दिनों में पर्यावरण के प्रति लोगों की चिंता बढ़ी है और वह इससे काफी खुश हैं। उनका कहना है कि वह छात्रों द्वारा पर्यावरण की भलाई के लिए किए जा रहे प्रदर्शनों की सराहना करते हैं। वे शुक्रवार को किए जा रहे इन अभियानों से काफी खुश हैं। जिन्हें जमीनी स्तर पर किया जा रहा है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि विश्व के वैज्ञानिकों का गठबंधन होने के नाते वह फैसले लेने वाले नेताओं को हर स्तर पर मदद पहुंचाने के लिए तैयार हैं। उनका कहना है कि मानवता को पृथ्वी पर बनाए रखने के लिए कार्य करना होगा क्योंकि हमारा केवल एक ही घर है और वो है पृथ्वी। बता दें ये रिपोर्ट ऐसे समय में सामने आई है जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ऐतिहासिक पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका को बाहर करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इस समझौते का उद्देश्य कार्बन उत्सर्जन को कम करना है।