उत्तर प्रदेश में जयप्रकाश जी एक लम्बे अन्तराल के बाद गुजरात में रविशंकर महराज के अनशन से लौटते हुए लखनऊ पहुंचे। जहां वह राजभवन में तत्कालीन राज्यपाल अकबर अली खान के अतिथि बने। इस दौरान लखनऊ के पूर्व मेयर दाऊ जी गुप्ता ने उनके द्वारा आयोजित राईट टू रिकाल (चुने हुये प्रतिनिधियों को वापस बुलाने) पर एक गोष्ठी गंगा प्रसाद मेमोरियल हाल में हुई। जिसमें जयप्रकाश जी को आना था। उस मीटिंग में कुल 20-25 लोग ही शामिल हुए जिसमें मेरे साथ बाराबंकी से करीब 5-7 लोग पहुंचे। कांग्रेस के विरुद्ध गुजरात में तेजी से आन्दोलन शुरु हो गया था। जिसकी चिंगारी बिहार, उत्तर प्रदेश सहित अन्य प्रान्तों में भी पहुंच चुकी थी। बिहार के नवजवान भी आन्दोलन के रास्ते पर संघर्ष समितियां बनाकर सत्याग्रह कर रहे थे। उत्तर प्रदेश में जयप्रकाश को गंगा प्रसाद मेमोरियल हाल में आयोजित सभा से काफी निराशा लगी।
कुछ समय बाद जयप्रकाश जी को राजभवन में रोके जाने पर गर्वनर अकबर अली खां को राज्यपाल के पद से हटना पड़ा। थोड़े समय बाद लखनऊ विश्वविद्यालय के तत्कालीन अध्यक्ष नागेन्द्र प्रताप सिंह ने देश भर में आन्दोलन की फैैलती आग को देखते हुए लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रसंघ की सभा के लिये जयप्रकाश जी को आमांत्रित किया गया। उन्हे बुलाने का जिम्मा मुझे और मेरे मित्र हर्षवर्धन को सौंपा गया। हम लखनऊ से दिल्ली पहुंचे ही थे कि दिल्ली में पता चला कि जयप्रकाश जी पटना से वाया कानपुर होते हुए लखनऊ जा रहे हैं। मुझे तत्काल दिल्ली से वापस आना था।
वहां बिहार के वरिष्ठ समाजवादी नेता, पुलिस परिषद के जन्मदाता एवं पूर्व गृहमंत्री रामानन्द तिवारी से भेट हुयी। तदोपरान्त श्री तिवारी के साथ हम सभी लखनऊ वापस आ गये। जेपी ने छात्रसंघ की सभा को सम्बोधित किया। शाम को अगली मीटिंग उनकी बेगम हजरत महल पार्क में आयोजित की गयी थी। जो सभा आज भी इतिहास के पन्नो में दर्ज है। उस अभूतपूर्व सभा में शामिल लोगों का हुजूम देखकर जेपी को यह आभास ही नही हो रहा था कि अभी कुछ दिन पूर्व एक साधारण से हाल में आयोजित सभा मंे जहां 20-25 ही लोग ही शामिल हुए थे। वहीं कांग्रेस के प्रति बढ़े रोष को देखते हुए बेगम हजरत महल पार्क से लेकर हजरतगंज चौराहे तक लोगों का हुजूम देखते बनता था। उस सभा में जयप्रकाश जी ने उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री चन्द्रभान गुप्त को सम्मलित होने से इसलिए रोका क्योंकि जो उन्हे उनके 65 वें जन्मदिवस पर 65 लाख की थैली भेट की गयी थी उसका हिसाब उनको देखना था।
जेपी ने बड़ी विनम्रता से सभा में कहा कि गुप्ता जी मेरे बड़े भाई के समान है और मुझे पूरा विश्वास है कि उनको दी गयी थैली बिना किसी दबाव के स्वैच्छा पूर्वक लोगों ने दिया है। लेकिन फिर भी मेरी अपनी संतुष्टि के लिये मुझे उसका हिसाब देखना है। उस सभा को देखकर मुझे लगता था कि जेपी के नेतृत्व में किसी नई क्रान्ति का उद्भव होने वाला है। बिना किसी साधन के बिना इकट्ठा हुए लोगों में क्रान्ति परिवर्तन की अलख नजर आ रही थी। पटना से लखनऊ तक पहुंचने में जेपी का लगभग सभी स्टेशनो पर जोरदार स्वागत हुआ। इन सभी स्थितियों को देखकर जेपी बेहद प्रभावित थे और देश की जनता जो भ्रष्टाचार से टूट चुकी थी परिवर्तन के लिये किसी भी हद तक संघर्ष करने को तैयार थी। इस सारी स्थितियों का जायजा लेते हुए जेपी ने सम्पूर्ण क्रान्ति का आवाहन किया। जब जेपी से पूछा गया कि सम्पूर्ण क्रान्ति का प्रारुप क्या होगा तो उन्होने कहा कि ‘‘ जो डा लोहिया की सप्त क्रान्तियां थी वही सम्पूर्ण क्रान्ति है। समाजवादी आन्दोलन के उस महान योद्धा से पत्रकारों ने पूछा कि आप का स्वास्थ्य बेहद खराब है। आपकी इतनी बड़ी लड़ाई है अगर कोई अनहोनी होती है तो इस आन्दोलन को कौन चलायेगा ? तो उन्होने कहा कि मेरे बाद यह आन्दोलन एसएम जोशी के नेतृत्व में चलेगा। चूंकि मैं इस आन्दोलन में शुरुआती दिनो से ही शामिल हो गया था। मैं जनपद बाराबंकी के सोशलिस्ट पार्टी का जिलाध्यक्ष एवं राज्यसमिति का सदस्य था।