मुंबई हमलों के मास्टरमाइंड जमात-उद-दावा चीफ हाफिज सईद को मिली रिहाई पर भारत ने कड़ी नाराजगी जताई है। भारत ने गुरुवार को कहा कि पाकिस्तान ऐसा कर के प्रतिबंधित आतंकवादियों को ‘मुख्यधारा’ में लाने की कोशिश कर रहा है। दूसरी ओर अमेरिका सहित अंतरराष्ट्रीय समुदाय की ओर से बढ़ रहे दबाव से ‘घबराया’ पाकिस्तान अब एक बार फिर हाफिज को किसी दूसरे केस में हिरासत में लिए जाने पर विचार कर रहा है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि सईद की रिहाई से यह पता चलता है कि आतंक फैलाने के दोषियों को सजा दिलाने के प्रति पाकिस्तान में गंभीरता की कितनी कमी है। उन्होंने कहा पाकिस्तानी सिस्टम प्रतिबंधित आतंकवादियों को मुख्यधारा में लाना चाहता है। उन्होंने कहा कि भारत इस बात से सख्त नाराज है कि खुद को आतंकवादी मानने वाले और संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित आतंकवादी को यूं रिहाई दे दी गई।
बता दें कि बुधवार को मुंबई के 26/11 हमलों के मास्टरमाइंड को पाकिस्तान की एक अदालत ने पर्याप्त सबूत न होने का हवाला देते हुए हाफिज सईद को घर में नदरबंदी से रिहा करने का आदेश दिया था।
सईद पर अब दोबारा कानून का शिकंजा तभी कसा जा सकता है जब पाकिस्तान की सरकार उसके खिलाफ किसी दूसरे केस में कार्रवाई करे। एक आधिकारिक सूत्र ने बताया कि पाकिस्तान सरकार हाफिज को किसी दूसरे के केस में हिरासत में ले सकती है। दरअसल, पाकिस्तान को भी इस बात की चिंता है कि सईद के यूं रिहा होने से अंतरराष्ट्रीय बिरादरी द्वारा उस पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
पाक पर अमेरिका का दबाव
अमेरिका के आतंकवाद विरोधी शीर्ष जानकार और दक्षिण एशिया मामलों के विशेषज्ञों ने हाफिज को रिहा किए जाने की आलोचना करते हुए कहा कि पाकिस्तान का प्रमुख गैर नाटो सहयोगी का दर्जा रद्द करने का वक्त आ गया है। एक वरिष्ठ विशेषज्ञ ब्रूस रीडल ने कहा, ‘मुंबई में 26/11 हमले के नौ साल बीत गए, लेकिन अब तक इसका मास्टरमाइंड न्याय के घेरे से बाहर है। पाकिस्तान का प्रमुख गैरनाटो सहयोगी का दर्जा रद्द करने का वक्त आ गया है।’ बता दें कि है कि अमेरिका ने मुंबई हमलों में हाफिज की भूमिका को देखते हुए उस पर 10 मिलियन डॉलर का ईनाम घोषित किया है।
गौरतलब है कि इसी साल 31 जनवरी को हाफिर सईद और उसके 4 सहयोगियों- अब्दुल उबैद, मलिक जफर इकबाल, अब्दुल रहमान आबिद और काजी कशिफ हुसैन को पाकिस्तान की पंजाब सरकार ने ऐंटी टेररिस्ट ऐक्ट 1997 के तहत 90 दिनों के लिए हिरासत में लिया था। इस ऐक्ट के तहत सरकार किसी भी व्यक्ति को अलग-अलग आरोपों के लिए ज्यादा से ज्यादा 3 महीने के लिए हिरासत में रख सकती है, लेकिन हिरासत को आगे बढ़ाने के लिए इसकी न्यायिक समीक्षा जरूरी होती है।