नई दिल्लीः हाल ही में केंद्रीय चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पश्चिम बंगाल के पुलिस महानिदेशक को बदला है। इसके बाद से राज्य की ममता बनर्जी सरकार लगातार आयोग पर भेदभाव का आरोप लगा रही है। इसी मामले पर देश के सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि चुनाव आयोग देश के संविधान के नियमों के प्रति जवाबदेह है और उसका निष्पक्ष होना बेहद आवश्यक है। इसलिए कोई भी राज्य सरकार अपने किसी भी सेवारत नौकरशाह को चुनाव आयोग का अतिरिक्त प्रभार नहीं सौंप सकती है। अदालत ने यह भी कहा कि राज्य सरकार से जुड़े किसी भी व्यक्ति को चुनाव आयुक्त नियुक्त करना देश के संविधान के खिलाफ है।
उल्लेखनीय है कि शुक्रवार को सर्वोच्च न्यायालय ने गोवा सरकार के एक सचिव को राज्य के चुनाव आयुक्त का अतिरिक्त प्रभार देने के मामले पर सुनवाई करने के बाद यह फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि जो शख्स सरकार में कोई पद संभाल रहा हो उसे राज्य के चुनाव आयुक्त के पद पर कैसे नियुक्त किया जा सकता है। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन ने की और गोवा सरकार के इस कदम पर सवाल उठाया। उन्होंने अपने आदेश में यह भी कहाकि लोकतंत्र में चुनाव आयोग की स्वतंत्रता से समझौता नहीं किया जा सकता है।
अदालत ने आदेश में कहा कि सरकार में किसी पद को संभाल रहे व्यक्ति को राज्य चुनाव आयुक्त का अतिरिक्त प्रभार सौंपना संविधान की भावना के खिलाफ है। गौरतलब है कि राज्य के कानून सचिव को चुनाव आयुक्त का अतिरिक्त प्रभार भी सौंप दिया गया था। जिसके बाद उन्होंने जिला पंचायत के चुनावों में नए सिरे से आरक्षण लागू किया था। उनके इसी कानून को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी, जिस पर अदालत ने चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को संविधान की भावना के विरुद्ध बताया है।
गौरतलब है कि पिछले वर्ष फरवरी में गोवा में जिला पंचायत चुनाव कराए गए थे। चुनाव में लागू आरक्षण प्रक्रिया से नाखुश लोगों ने इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। वहां से होते हुए यह प्रकरण एक वर्ष में सर्वोच्च न्यायालय तक जा पहुंचा था।