लंबे समय से चली आ रही राइट टू प्राइवेसी की बहस पर विराम लगाते हुए उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है।
इसलिए किसी को भी इससे छेड़छाड़ की इजाजत नहीं मिल सकती। इस फैसले के बाद जाहिर है कि फैसला देश की जनता के पक्ष में ही गया है, क्योंकि हम अपनी निजी जानकारी किसी के साथ भी शेयर नहीं करना चाहते।
कोर्ट ने कहा कि यह संविधान की धारा 21 का हिस्सा है। यह धारा भारत के नागरिकों के लिए जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार सुनिश्चित करता है।
भारत का संविधान अपने नागरिकों के लिए छह और फंडामेंटल राइट सुनिश्चित करता है। आइए जानते हैं कि वे मौलिक अधिकार कौन से हैं…
स्वतंत्रता का अधिकार- स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार भारतीय नागरिकों को बोलने, कहीं भी रहने, संघ या यूनियन बनाने और व्यापार करने का अधिकार देता है
शोषण के विरुद्ध अधिकार- शोषण के विरुद्ध मौलिक अधिकार बालश्रम के विरोध में और मानव तस्करी रोकने का अधिकार देता है। 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कारखाने में काम करने से भी रोकता है।
धर्म की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार धर्म को मानने, उसका आचरण और प्रचार करने की अनुमति देता है। सिक्खों को कटार रखने की अनुमति भी देता है। वहीं धार्मिक कार्यों की स्वतंत्रता के साथ ही स्कूल-कॉलेज में धर्म की उपासना करने का फंडामेंटल राइट भी देता है।
संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार– संस्कृति और शिक्षा संबंधी मौलिक अधिकार हमे अपनी संस्कृति और भाषा को बचाए रखने का अधिकार देता है। अल्पसंख्यकों के हितों को सुराक्षित रखने और स्कूल-कॉलेज की स्थापन्ना करने के साथ ही उसके संचालन का अधिकारी भी देता है।
संपत्ति का अधिकार- संपत्ति का मौलिक अधिकार नागरिकों को संपत्ति अर्जित करने का अधिकार देता है।
संवैधानिक उपचारों का अधिकार- संवैधानिक उपचारों का मौलिक अधिकार किसी बंदी को कोर्ट के सामने पेश करने। अगर किसी सार्वजनिक पदाधिकारी के कारण किसी नागरिक के फंडामेंटल राइट का हनन हो रहा है तो कोर्ट ऐसे मामले में दखल देता है।