भोपाल [ TNN ] पत्रकारों पर झूठे प्रकरण तो दर्ज होना आम बात है, परन्तु अब पत्रकार समाचार लेने अथवा कवरेज के लिये जाता है तो उसकी पिटाई, कैमरा व मोबाईल तोडऩे की घटनाएं भी होने लगी है। पुलिसकर्मी गृह विभाग (पुलिस) के 6 जनवरी 2010 के आदेशों की धज्जियां उड़ा रही है। उन आदेशों का पालन कराने की जवाबदारी जिले के कप्तान पर होती है, परन्तु कप्तान भी पत्रकारों के मामले में चुप्पी साधे रहते है जिससे टी.आई. मनमानी करते है। तब निचला पुलिस अधिकारी, कर्मचारी भी मन के मालिक हो गये हंै। अधिकारी, कर्मचारियों पर अंकुश लगाने के लिये प्रदेश के पत्रकारों को एक जुट होकर मुकाबला करना होगा।
वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष राधावल्लभ शारदा ने बताया कि पिछले दिनों लटेरी (विदिशा), नरसिंहपुर, देवरी (सागर), पीथमपुर (इंदौर), पचमढ़ी (होशंगाबाद), इटारसी (होशंगाबाद), नसरूल्लागंज (सीहोर), हिण्डोरिया (दमोह), सावेंर (देवास) सहित ग्रामीण अंचलों में और भी घटनाएं हुई है। पत्रकारों के साथ हो रही पुलिस ज्यादती, अधिकारियों द्वारा झूठे प्रकरण दर्ज कराना यह इंगित करता है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और गृहमंत्री बाबूलाल गौर के साथ कोई बड़ा षडय़ंत्र रचा जा रहा है। गृह विभाग के आदेशों में जनसम्पर्क विभाग के आयुक्त पर भी जवाबदारी दी गई है। उन्हें भी पत्रकारों के प्रकरणों को देखने में रुची नहीं है।
देवरी के प्रकरण में भाजपा, कांग्रेस के नेताओं ने पत्रकार का साथ दिया, सांवेर के मामले में विधायक राजेश सोनकर ने रुचि ली तब जाकर दो पुलिसकर्मी का तबादला कर दिया। पत्रकार की पिटाई एफआईआर दर्ज होने के स्थान पर तबादला, यह कौन सा न्याय हुआ। शारदा ने कहा कि पूर्व डी.जी.पी. नंदन दुबे को कई मामले दिये। तत्काल कार्यवाही एवं सीआईडी जांच के आदेश हुये परन्तु आदेश पहुंचने में इतनी देर हो गई कि पत्रकार को कोर्ट से जमानत करनी पड़ी। शारदा ने प्रदेश के विशेष रूप से जिले एवं ग्रामीण अंचल के पत्रकारों से आग्रह किया है कि यदि उनके संज्ञान में किसी पत्रकार पर हुई झूठी शिकायत का मामला आता है तो अवश्य भेंजे। जिससे उनके मामले को उच्च स्तर पर उठाया जाकर न्याय दिलाया जा सके।