नई दिल्ली : भारतीय रेलवे घाटे में चल रही अपनी पहाड़ी इलाकों की ट्रेन को चलाने और उनकी देखभाल की जिम्मेदारी निजी कंपनियों को देने जा रही है। इसके साथ ही दुनिया का चौथे बड़े रेल नेटवर्क में कार्पोरेट भागीदारी की शुरुआत होने जा रही है।
भारतीय रेल: आने वाले हैं महंगे दिन !
नैरो गेज और मीटर गेज रेल ट्रैक से औपनिवेशिक काल के पहाड़ी स्टेशनों को जोड़ने वाले नेटवर्क पहले ऐसे होंगे, जो एक लाख आठ हजार किमी लंबे रेलनेटवर्क में निजी हाथों में दिए जाएंगे। यह जानकारी एक वरिष्ठ रेल अधिकारी ने दी।
अब ट्रांसजेंडर तीसरे लिंग के तौर पर शामिल
कालका-शिमला, सिलीगुड़ी-डार्जलिंग, नीलगिरी पहाड़ों को मैदानों से जोड़ने वाले और कांगड़ा वैली रेलवेज बड़े पैमाने पर रेलवे के लिए घाटे का सौदा हैं। पहली बार सरकरा इनकी बोली लगाकर निजी हाथों में संचालन के लिए देने की तैयारी कर रही है।
भारतीय रेल: यात्री सुविधाओं में क्षरण
इसके तहत विदेशी कंपनियां भी बोली लगा सकती हैं क्योंकि वर्तमान में रेलवे की निवेश नीति के तहत 100 फीसदी विदेशी ओनरशिप को शामिल किया गया है। अधिकारी ने बताया कि हमारे पास लगातार प्राइवेट प्लेयर्स की ओर से इस बारे में जानकारी मांगी जा रही है।
अब दो रुपये से भी कम में 10 लाख का बीमा!
हम इन जगहों से रेल के संचालन से पूरी तरह से बाहर निकलना चाहते हैं और प्राइवेट प्लेयर्स को ऑपरेशन्स में सिर्फ मदद करेंगे। ये सभी रेलवे अंतरराष्ट्रीय टूरिस्ट मैप पर हैं। डार्जलिंग हिमालयन रेलवे को यूनेस्को ने वर्ल्ड हैरिटेज साइट घोषित किया है। प्राइवेट प्लेयर्स के लिए यहा बड़ी संभावनाएं हैं और इससे रेलवे को भी लाभ होगा।
लूट-भ्रष्टाचार व अधर्म का पर्याय?
भारतीय रेलवे में करीब 15.4 लाख लोग काम करते हैं और इसके 6,800 स्टेशन्स के बीच रोजाना करीब 7,000 ट्रेनें चलती हैं। बावजूद इसके भारतीय रेलवे लाभ कमाने की स्थिति में नहीं है। मार्च 2017 में खत्म होने वाले वित्तीय वर्ष में पैसेंजर सेगमेंट से करीब 33 हजार करोड़ रुपए का नुकसान होने का अनुमान है।