#मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आखिरकार अपने मंत्रिमंडल का विस्तार कर ही लिया परन्तु लम्बी प्रतीक्षा के बाद हुए इस मंत्रिमंडल विस्तार को ‘देर आयाद दुरूस्त आयद’ कहना गलत होगा।
एक दशक से भी ज्यादा समय से लोकप्रियता के शिखर पर विराजमान मुख्यमंत्री को अगर अपने मंत्रिमंडल के विस्तार में इतना लंबा समय जग जाए तो यह सचमुच आश्चर्य की बात है और इतनी जद्दोजहद के बाद भी मुख्यमंत्री एक संतुलित मंत्रिमंडल के गठन में असफल साबित हो जाए तो यह और भी बड़े आश्चर्य की बात है।
इस मंत्रिमंडल विस्तार के तौर तरीकों और मानदण्डों पर जो सवाल उठ रहे है वे इस धारणा को भी गलत ठहराने के लिए काफी है कि लोकप्रियता के शिखर पर बैठै मुख्यमंत्री को सरकार और संगठन के अन्दर कोई चुनौती नहीं है।
न तो इस मंत्रिमंडल विस्तार से यह साबित होता है कि मुख्यमंत्री को इसके लिए पार्टी हाईकमान में फ्री हैण्ड दे रखा था और न ही आप इस नतीजे पर पहुंच सकते हैं कि मुख्यमंत्री के सामने समझौता करने की कोई विवशता थी।
मुख्यमंत्री शायद अब इस सवाल का कोई संतोषजनक उत्तर देने की स्थिति में नहीं है कि इतना लम्बा इंतजार कराने के बाद भी वे एक ऐसी टीम का गठन करने में सफल क्यों नहीं हुए जिससे पार्टी और सरकार के अंदर में मुख्यमंत्री के वर्चस्व को चुनौती देना संभव नहीं हो पाता।
मुख्यमंत्री ने अगर मंत्रिमण्डल विस्तार में इतना लम्बा वक्त लिया तो उनसे यह अपेक्षा भी की जा रही थी कि वे शपथ ग्रहण समारोह संपन्न होते ही मंत्रियों के विभागों की घोषणा भी कर देंगे।
परन्तु शपथ ग्रहण समारोह के 48 घंटों के बाद तक भी मुख्यमंत्री इस अनिश्चिता की स्थिति का समाना करते रहे कि किस मंत्री के लिए कौन सा विभाग उपयुक्त रहेगा और इसके बाद भी निश्चित तौर पर यह कहना मुश्किल है कि सभी मंत्री अपने विभाग से संतुष्ट है अथवा वे अपने विभागों में अपने दायित्वों को बखूबी निभा पाएंगे। यह प्रश्न इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि वर्तमान विधानसभा के कार्यकाल को पूर्ण होने में मात्र डेढ़ साल ही बाकी रह गया है और अपनी नई टीम के साथ अगले डेढ़ सालों में सारे वादों को पूर्ण कर पाना किसी कठिन चुनौती से कम नहीं है।
मुख्यमंत्री चौहान की इस नई टीम में अगर 75 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुके दो वरिष्ठ मंत्रियों बाबूलाल गौर तथा सरताज सिंह को स्थान नहीं मिला है तो इसका आधार वहीं मानदण्ड है जिसके आधार पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने मंत्रिमण्डल का गठन किया था।
बाबूलाल गौर और सरताज सिंह को इसके लिए पहले ही मानसिक रूप से तैयार रहना चाहिए था लेकिन मुख्यमंत्री चौहान से भी यह सवाल तो पूछा ही जा सकता है कि अगर वर्तमान सरकार के साढ़े तीन सालों के कार्यकाल में बाबूलाल गौर की गृहमंत्री के रूप में सेवाएं लेना जरूरी था तो क्या अगले डेढ़ साल का कार्यकाल आखिर उन्हें क्यों नहीं दिया जा सकता था।
यही बात सरताज सिंह के बारे में भी कही जा सकती है। कही ऐसा तो नहीं है कि मुख्यमंत्री स्वयं ही बाबूलाल गौर के विवादास्पद और चर्चित बयानों के कारण उनसे छुटकारा पाना चाह रहे थे और इसीलिए उन्होंने 75 वर्ष के फार्मूले को इसके लिए सर्वोत्तम बहाने के रूप में इस्तेमाल कर दिया।
वैसे अगर बाबूलाल गौर और सरताज सिंह इस अपमान का शिकार बनने के पूर्व ही स्वयं ही स्वेच्छा पूर्वक पद त्याग का आदर्श प्रस्तुत कर देते तो उन्हें मध्यप्रदेश में पार्टी के परोक्ष मार्गदर्शक मण्डल का सदस्य बनने की मजबूरी का सामना नहीं करना पड़ता।
खैर अब शिवराज मंत्रिमंडल के उन सदस्यों को भी अभी से सतर्क हो जाना चाहिए जो अगले कुछ वर्षों में 75 वर्ष की आयु पूर्ण करने जा रहे हैं। यह बात भी अब तय मानी जानी चाहिए कि अगले विधानसभा चुनावों में भी विपक्षी कांग्रेस पार्टी अगर भाजपा को ही सत्ता की चाबी सौंपने के लिए तैयार हो जाती है तो नई सरकार में 75 साल की आयु पूरी कर चुके विधायकों को मंत्री पद का मोह त्यागना होगा।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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