भोपाल- प्राकृतिक आपदा से जूझते किसान अब अपना और परिवार का पेट भरने के लिए अपने बच्चों को ही बेचने पर मजबूर होने लगे हैं। मध्यप्रदेश में ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं जब साहूकार के कर्ज तले दबे किसानों ने अपने जिगर के टुकडों को उनके पास गिरवी रख दिया।
कई मामले-सामने आने पर अब पुलिस प्रशासन ने ऐसी घटनाओं को गंभीरता से लिया है। मध्यप्रदेश के ही मोहनपुर गांव के किसान लाल सिंह की फसल पिछले साल प्राकृतिक आपदा के चलते पूरी तरह खराब हो गई थी।
कर्ज और भूखमरी से जूझते लाल सिंह को मजबूरी में ऐसा कदम उठाना पड़ा जिसकी कोई उम्मीद भी नहीं कर सकता था। लाल सिंह ने अपने दो बेटों को एक साहूकार के यहां मेहनत मजदूरी करने के लिए मात्र 35 हजार रुपये में गिरवी रख दिया। जिसने उन्हें आगे एक चरवाहों को सौंप दिया।
लाल सिहं ने बताया कि उसके पास अपना कर्जा चुकाने और फसल की बुवाई के लिए इसके सिवाय कोई चारा नहीं था। लाल सिंह के अनुसार वह जानता था कि यह गैरकानूनी है और उसके बच्चों को गाली गलौज सहने के साथ कठिन परिस्थितियों में काम करना पड़ सकता है।
प्रदेश के एक अधिकारी कहते हैं कि यह कहानी अकेले लाल सिंह की नहीं है, फसल बर्बादी और साहूकार के बढ़ते कर्ज के चलते किसानों के सामने आर्थिक दिक्कतें बढ़ती जा रही हैं।
हरदा के जिलाधिकारी रजनीश श्रीवास्तव बताते हैं कि अधिकारियों ने अप्रैल से अब तक खरगोन और हरदा जिले से बाल मजदूरी में लगे हुए पांच बच्चों को बचाया है। अधिकारी मानते हैं कि प्रदेश में अभी और ऐसे कई मामले हो सकते हैं जहां पैसों के लिए मजबूरी में बच्चों को गिरवी रख दिया गया हो।
वह मानते हैं कि यह काफी चिंता की बात है कि किसानों को अपने अपना कर्जा चुकाने के लिए अपने बच्चों को बेचना पड़ रहा है। हम इसे जारी रखने की अनुमति किसी हाल में नहीं दे सकते। अधिकारियों द्वारा छुड़ाए गए पांच बच्चों में लाल सिंह के भी दो बच्चे 12 साल का सुमित और 11 वर्षीय अमित शामिल हैं। वहीं बाकी बच्चों को भी उनके परिवारों के बीच पहुंचा दिया गया है।
वहीं साहूकार के चंगुल से छूटे लाल सिंह के बेटे अमित ने बताया कि हमारी काम दिन पर भेडों और पशुओं को चराने का रहता था। दिनभर में हमे दो बार ही भोजन दिया जाता था, जब ये सब असहनीय हो गया तो हम वहां से भाग निकले।
अधिकारियों ने चरवाहों के खिलाफ इस अनैतिक कार्यों में लिप्त रहने के कारण जांच के आदेश दिए हैं। हर्दा के चिल्ड्रन चैरिटी चाइल्डलाइन के निदेशक विष्णु जयसवाल बताते हैं कि उनकी संस्था के अधिकारी लगातार ऐसे मामलों में बचाए गए बच्चों के संपर्क में रहते हैं इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि उनकी ठीक ढंग से देखभाल की जा रही है या नहीं। एजेंसी