वस्तु एवं सेवा कर (GST) पर विपक्षी दलों के साथ ही बीजेपी के अपने नेता ने भी सार्वजनिक तौर पर मोर्चा खोल दिया है। भाजपा के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी ने ट्वीट कर कहा कि GST व्यवस्था ध्वस्त होने वाली है।
उन्होंने लिखा, ‘GST व्यवस्था ढहने के करीब है। रिफंड न होने के कारण व्यापारी सड़कों पर उतर सकते हैं। जमा राशि (व्यापारियों द्वारा) से आईसीआईसीआई और एचडीएफसी संपन्न हो गए हैं।’
यह पहला मौका नहीं है जब भाजपा नेता ने जीएसटी के मौजूदा तौर-तरीकों पर हमला बोला है। वह शुरुआत से ही इसकी कड़ी आलोचना करते रहे हैं। स्वामी ने जनवरी में जीएसटी को बड़ी त्रासदी करार देते हुए कहा था कि सरकार इसे सही तरीके से लागू करने में विफल रही है।
एसोचैम द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में स्वामी ने कहा था कि जीएसटी नेटवर्क (जीएसटीएन) की विफलता के कारण जीएसटी अब तक पूरी तरह असफल रहा है। उन्होंने गंभीर आरोप लगाते हुए दावा किया था कि जीएसटीएन के जरिये निजी विदेशी बैंकों को लाभ पहुंचाया जा रहा है।
उन्होंने कहा था, ‘जीएसटी में जमा किया जाने वाला कर एचडीएफसी बैंक और आईसीआईसीआई बैंकों के विशेष खातों में जा रहा है और मुझे विश्वास है कि ये बैंक इन पैसों का उपयोग 30 दिन तक के अल्पावधि ऋण की अदायगी में करते होंगे। दोनों बैंकों में बड़ी हिस्सेदारी विदेशी बैंकों की है।’
उन्होंने पिछले साल कहा था कि जीएसटी वाटरलू युद्ध साबित होगा। बता दें कि इस लड़ाई के बाद नेपोलियन के प्रभुत्व का खात्मा हो गया था।
भारत में जीएसटी के मौजूदा स्वरूप पर विश्व बैंक भी अपनी रिपोर्ट में चिंता जता चुका है। वैश्विक संस्था ने इसे दुनिया में सबसे जटिल बताया था। साथ ही टैक्स स्लैब पर भी गंभीर सवाल उठाए थे।
रिपोर्ट में कुल 115 देशों में भारत में टैक्स रेट के सबसे ज्यादा होने की भी बात कही गई थी। बता दें कि भारत में जीएसटी के तहत कुल पांच स्लैब तय किए गए हैं। दुनिया के 49 देशों में जीएसटी के तहत एक और 28 देशों में महज दो स्लैब हैं।
हालांकि, वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 12 और 18 फीसद वाले स्लैब को एक करने का वादा किया है। लेकिन, कर अदा करने में सुधार और राजस्व में वृद्धि के बाद ही यह कदम उठाने की बात कही थी। पिछले साल नवंबर में GST काउंसिल की गुवाहाटी बैठक में 28 फीसद के स्लैब को लेकर महत्वपूर्ण फैसला लिया गया था। पहले इसके दायरे में 228 वस्तुओं एवं सेवाओं को रखा गया था, जिसे 50 तक सीमित कर दिया गया था। इसके बावजूद कई सेक्टर को इससे ज्यादा राहत नहीं मिली है।
खासकर कपड़ा उद्योग पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ा है। गुजरात में कपड़ा व्यवसायियों ने इसको लेकर कई दिनों तक लगातार प्रदर्शन किया था।