नई दिल्ली [ TNN ] राजीव गांधी की हत्या सत्ता के शिखर पर बैठे रसूखदारों की साजिश का हिस्सा थी। यह कहना है भारत के पूर्व गृह सचिव आर. डी. प्रधान का। उन्होंने अपनी किताब ’माई इयर्स विथ राजीव एंड सोनिया’ में यह बात कही है। प्रधान बाद में अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल बने थे।
प्रधान ने अपनी किताब में जासूस की पहचान किए बगैर लिखा है कि 10 जनपथ में ऐसा कोई था जो गुप्तचर को सूचना देता था। किताब में यह भी लिखा गया है कि प्रधान यह पक्के तौर पर जानते हैं, क्योंकि 1991 के पूरे लोकसभा चुनाव के दौरान अमेठी में बनी रहने वाली सोनिया भी ऐसा महसूस करती हैं।
उन्होंने कहा है कि कई संदिग्ध गिरतार किए गए और कुछ को 1991 में हुई हत्या के लिए सजा भी मिली। लेकिन फिर भी उनकी धारणा है कि सच्चाई कभी सामने नहीं आएगी।
उल्लेखनीय है कि 21 मई 1991 को चेन्नई में एक महिला आत्मघाती ने चुनावी सभा में एक धमाके में राजीव गांधी की हत्या कर दी थी। उस समय वे विपक्ष के नेता थे। लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल इलम (लिट्टे) पर इस हत्याकांड को अंजाम देने का आरोप लगा।
हालांकि, लिट्टे ने इन आरोपों से इनकार किया, लेकिन भारतीय जांचकर्ताओं ने दावा किया कि तमिल टाइगरों ने श्रीलंका के उत्तर में भारतीय शांति सेना भेजने का बदला लेने के लिए राजीव गांधी की हत्या की। बाद में प्रधान भी राजीव गांधी की टीम में शामिल हुए थे।
प्रधान ने कहा कि दिल्ली में पूरी सुरक्षा व्यवस्था पर पश्च दृष्टि रखकर हर कोई यह मान ले कि राजीव गांधी की जान पर लिट्टे के खतरे को नजरअंदाज किया गया। उनका कहना है कि उन्होंने एक बार कुछ श्रीलंकाइयों को 10 जनपथ के बाहर गांधी परिवार के एक पुराने सहयोगी के साथ बैठे देखा था। इस पर उन्होंने कहा कि उनका निश्चित रूप से 10 जनपथ में किसी के साथ संपर्क था जिसने राजीव गांधी के साथ गुप्त मुलाकात की व्यवस्था की जिसके बारे में बहुतों को नहीं पता।
प्रधान ने कहा कि तमिलनाडु के तत्कालीन राज्यपाल भीष्मनारायण सिंह को ही एकमात्र ऐसा शख्स माना जाए जो राजीव गांधी की जान बचा सकते थे। तमिलनाडु में उस समय राष्ट्रपति शासन था।
हालांकि, प्रधान का यह भी कहना है कि पूर्व गृह सचिव होने के नाते उन्हें राजीव गांधी की जान को खतरे का भान था। राजीव गांधी कई संगठनों के निशाने पर थे, जिनमें सिख आतंकवादी, श्रीलंका के लिट्टे और अमेरिकी खुफिया एजेंसी सेंट्रल इंटेलीजेंस एजेंसी (सीआईए) (कुछ सूत्रों के मुताबिक) भी शामिल थे।
प्रधान ने अपनी किताब में लिखा कि एशिया में राजीव गांधी की छवि बढ़ रही थी, जो अमेरिकियों को रास नहीं आ रही थी और वे राजीव गांधी के बहुमत से लौटते देख परेशान थे।