आरबीआई ने की नई मौद्रिक नीति की घोषणा कर दी है और ब्याज दरों में किसी तरह का परिवर्तन नहीं किया है। रेपो रेट को 6 फीसद पर बरकरार रखा गया है। मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी के 6 में से 5 सदस्यों ने ब्याज दरों को यथास्थिति रखने के पक्ष में वोट दिया। आपको बता दें नीतिगत दर वह दर होती है जिसपर आरबीआई बैंकों को कर्ज देता है। इसी दर के घटने या बढ़ने पर आम जनता को मिलने वाले कर्ज की दर तय होती है।
अगर आपको भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से नीतिगत ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद है तो आपको थोड़ी निराशा हो सकती है। इसका कारण यह है कि आरबीआई ने की नई मौद्रिक नीति की घोषणा कर दी है और ब्याज दरों में किसी तरह का परिवर्तन नहीं किया है।
रेपो रेट को 6 फीसद पर बरकरार रखा गया है। मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी के 6 में से 5 सदस्यों ने ब्याज दरों को यथास्थिति रखने के पक्ष में वोट दिया। आपको बता दें नीतिगत दर वह दर होती है जिसपर आरबीआई बैंकों को कर्ज देता है। इसी दर के घटने या बढ़ने पर आम जनता को मिलने वाले कर्ज की दर तय होती है।
आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति की बैठक 6 और 7 फरवरी 2018 को हुई थी और इसका नतीजा 7 फरवरी को सामने आया।
मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी ने आने वाले दिनों में महंगाई बढ़ने की आशंका जताई है और महंगाई के लक्ष्य को 4 फीसद के पास रखने की बात को दोहराया है। ऐसे में यह माना जा सकता है कि सस्ते कर्ज की उम्मीद लगाए बैठे लोगों को फिलहाल इंतजार करना होगा।
एमपीसी ने 5-6 दिसंबर (2017) को हुई अपनी पिछली बैठक में वित्तवर्ष 2017-18 की अपनी पांचवीं द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा में बढ़ती महंगाई का हवाला देते हुए नीतिगत ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया था। आरबीआई ने इस बैठक में रेपो रेट को छह फीसद पर और रिवर्स रेपो रेट भी 5.75 फीसद पर बरकरार रखा था।
29 जनवरी 2018 को पेश किए गए आर्थिक सर्वे के बाद जब अरविंद सुब्रमण्यम से आरबीआई की ओर से ब्याज दरों में कटौती की संभावनाओं के बारे में प्रश्न किया गया तो उन्होंने कहा, “परिभाषा के मुताबिक अगर ग्रोथ बढ़ रही हो और महंगाई भी बढ़ रही हो तो मौद्रिक नीति में उदारता की गुंजाइश कम रहती है। परिभाषा के मुताबिक यह सच्चाई है।” हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि ब्याज दरों में संभावित कटौती पर बोलना उनके लिए उचित नहीं है, क्योंकि यह आरबीआई का अधिकार क्षेत्र है।
पंजाब नेशनल बैंक के पूर्व चीफ जनरल मैनेजर उदय शंकर भार्गव ने बताया कि महंगाई के आंकड़े नीतिगत दरों में कटौती की राह मे रोड़ा बने हुए हैं। सरकार के सामने महंगाई को काबू में लाना सबसे बड़ी चुनौती, महंगाई बढ़ने के कारण की नीतिगत ब्याज दरों में कटौती की गुंजाइश कम है। सरकार ने अपना महंगाई लक्ष्य भी बढ़ा रखा है,इसलिए नीतिगत ब्याज दरों में फेरबदल मुश्किल लग रहा है।