नई दिल्ली : इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के विशेष निदेशक और रिसर्च ऐंड एनालिसिस विंग (रॉ) के प्रमुख रह चुके ए. एस. दुलत भारत-पाकिस्तान संबंध और कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ माने जाते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में साल 2000 और 2004 के बीच वह कश्मीर मामलों में प्रधानमंत्री के सलाहकार थे। नब्बे के दशक के उतार-चढ़ाव वाले दौर में कश्मीर को बहुत करीब से देख चुके और कश्मीर संबंधी नीति-निर्माण प्रक्रिया का हिस्सा रह चुके दुलत से नवभारत टाइम्स के सामरिक मामलों के पत्रकार रवि शंकर ने बातचीत कर यह समझने की कोशिश की कि अनुच्छेद 370 को हटाने का सरकार का हालिया फैसला इस राज्य को, इसकी जनता को और पूरे देश को किन रूपों में प्रभावित कर सकता है।
प्रस्तुत हैं नवभारत टाइम्स में प्रकाशित बातचीत के अंश:
जम्मू-कश्मीर पर मोदी सरकार के हालिया फैसले को किस रूप में देखते हैं?
पिछले कई दिनों से लग रहा था कि कुछ-न-कुछ होने वाला है लेकिन ये लोग ऐसा कुछ कर देंगे, इसका ऐतबार बिल्कुल नहीं था। मैं अपनी बात कहूं तो इसकी कोई जरूरत नहीं थी। अनुच्छेद 370 का अब यूं भी कुछ खास मतलब नहीं रह गया था। जम्मू-कश्मीर में आपको जो करना था आप कर सकते थे, कर ही रहे थे। अनुच्छेद 370 इसमें बाधा नहीं था। फिर भी चूंकि ये लोग पहले से ऐसा कहते रहे हैं, मैनिफेस्टो में भी था तो अनुच्छेद 370 की बात समझी जा सकती है।
उसे हटाना था तो हटा देते लेकिन बाइफरकेशन की क्या जरूरत थी? जम्मू-कश्मीर को दो हिस्सों में बांट क्यों दिया? जैसा कि पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम ने भी कहा पार्लियामेंट में, और बिल्कुल सही कहा कि अनुच्छेद 370 को हटाने को लेकर बहस की गुंजाइश है मगर जम्मू और कश्मीर राज्य को तोड़कर दो हिस्से में बांटने की तो कोई जरूरत नहीं थी। कश्मीर के लोग इसको किस रूप में लेंगे कहा नहीं जा सकता। यह कदम उन्हें उकसाने जैसा है।
सरकार इतना बड़ा कदम इस तरह अचानक उठा लेगी यह शायद ही किसी ने सोचा हो। आपको नहीं लगता कि बहुत आसानी से या कहें कि शायद जल्दबाजी में सरकार ने यह कदम उठा लिया?
इस सरकार के पास इतना बड़ा बहुमत है कि यह सब करना बहुत आसान हो गया उसके लिए, खासकर तब जब विपक्ष इतना कमजोर है। आप यह तो जानते हैं ना कि उनकी (बीजेपी की) सोच और पहले के लोगों की सोच अलग-अलग है। इनका तो एजेंडा था और मैनिफेस्टो में भी था कि यह करना है तो कर दिया।
खैर जो करना था, वह एक झटके में कर तो दिया, लेकिन नतीजा क्या होगा इसका?
हां मुझे भी फिक्र यही है कि रिपरकशन क्या होगा। मुझे लगता है कि इसके नतीजे के रूप में वायलेंस जरूर बढ़ेगी। जो सबसे बड़ा खतरा है वह कहीं बाहर से नहीं बल्कि कश्मीर के अंदर से है। यह बात बहुत गंभीर है। जब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान कहते हैं कि कश्मीर में अब पुलवामा टाइप अटैक ज्यादा होंगे तो उनका मतलब है कि अब कश्मीरी लड़के इन्वॉल्व होंगे क्योंकि पुलवामा में हमारा अपना लड़का ही इन्वॉल्व था। और इस किस्म के लोगों की कमी नहीं है कश्मीर में, जो इस तरह के कामों को अंजाम देने के लिए राजी हैं। केंद्र के इस कदम के बाद कश्मीर में ऐसे लड़कों की संख्या बढ़ने का बहुत ज्यादा अंदेशा है। यही वजह है कि वायलेंस बढ़ने के खतरे को गंभीरता से लेने की जरूरत है।
यानी सुरक्षा व्यवस्था में ढील मिलते ही फिर से प्रोटेस्ट का दौर शुरू हो जाएगा?
नहीं-नहीं बात प्रोटेस्ट की नहीं है। पत्थरबाजी या जुलूस, बंद जैसे प्रोटेस्ट की बात मैं नहीं कर रहा। अभी पथराव या इंतेफादा टाइप प्रोटेस्ट होगा ऐसा नहीं लगता है। यह तो बिल्कुल दूसरी तरह की हिंसा की बात है जो मैं कह रहा हूं। मैं यह भी बता दूं कि तत्काल यानी महीने-दो-महीने में कुछ नहीं होगा। मेरा ख्याल है कि यह शॉक बहुत बड़ा है। कश्मीरियों को इस शॉक से रिकवर करने में कुछ टाइम लगेगा।
लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोभाल कहते हैं कि कश्मीर शांत है और लोग खुश हैं…
डोभाल साहब का बयान मैंने देखा है जिसमें वे कह रहे हैं कि लोग कश्मीर में खुश हैं और कोई ऐसा खतरा नहीं है। तो बस ठीक है। मैं यही कह सकता हूं कि अगर खतरा नहीं है तो बहुत अच्छी बात है। लेकिन मेरा आकलन है कि खतरा आज नहीं दिखेगा। यह कुछ टाइम के बाद निकलेगा। वायलेंस बढ़ने के आसार हैं और यह बढ़ेगी। यह भी कह दूं कि जरूरी नहीं कि इसकी रेंज कश्मीर तक ही सीमित रहे। यह देश के दूसरे हिस्सों में भी असर दिखा सकता है। हालांकि मैं चाहता हूं कि यह ना बढ़े और मैं गलत साबित हो जाऊं।
इस बदले हुए माहौल में राजनीतिक दलों और खासकर हुर्रियत का रोल क्या रहेगा?
हुर्रियत का रोल तो अब खत्म हो चुका है। उनमें अब कोई जान नहीं बची है। स्थापित पॉलिटिकल पार्टीज का क्या कहना, उनका हाल तो देख ही रहे हैं। सब निपट गए हैं। हालांकि इन सबको खत्म मानना गलत होगा। राजनीति में कुछ भी कभी खत्म नहीं होता। पर मेरा ख्याल है कि बदले हालात में इन दलों का कोई खास रोल नहीं बचा है। अब जो ये लड़के हैं कश्मीर के, उनसे ही खतरा है। यूं भी अब तो सब कुछ डायरेक्ट दिल्ली से कंट्रोल होगा। सरकार भी यही चाहती थी। तो हमें इंतजार करना चाहिए, क्या कुछ होता है आने वाले दिनों में।