नई दिल्ली- सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सर्च इंजनों से कहा कि जब तक अपलोड हुए वीडियो को हटाया जाए, वक्त लग जाता है और ऐसे में उस शख्स की साख चली जाती है, जिसका वीडियो होता है। तो क्या ये संभव है कि पहले ही इन्हें रोक दिया जाए ना कि बाद में उपचार हो।
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हालाँकि गूगल की ओर से कहा गया कि ये संभव नहीं है क्योंकि हर मिनट 400 घंटे के वीडियो अपलोड होते हैं। ऐसे में कंपनी को वीडियो की छानबीन करने के लिए पांच लाख लोगों की जरूरत होगी। गूगल के वकील ने कहा कि ये संभव नहीं है कि अपलोड होने वाले सभी वीडियो की जांच की जाए। अगर नोडल एजेंसी के जरिये कोई शिकायत आए तो कंपनी कार्यवाही कर सकती है।
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आजकल कोई भी कुछ भी वीडियो अपलोड कर सकता है और लोग इसके लिए बिल्कुल नहीं घबराते। ऐसे में पीड़ित की साख को खतरा होता है न कि अपलोड करने वाले को।
वहीं केंद्र ने कहा कि ऐसे मामलों से निपटने के लिए नोडल एजेंसी का गठन किया जा रहा है।
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दरअसल रेप के जो वीडियो सोशल साइट पर मौजूद है, उस पर कैसे रोक कैसे लगाई जा सकती है, और उन्हें सोशल मीडिया पर डालने वालों के ख़िलाफ़ क्या-क्या करवाई हुई है, सुप्रीम कोर्ट इस बाबत सुनवाई कर रहा है।
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इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने सर्च इंजन गूगल, याहू और माइक्रोसाफ्ट को नोटिस जारी कर पूछा था कि ऐसे वीडियो को अपलोड होने से रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं।
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दरअसल एनजीओ प्रज्ज्वला ने पूर्व प्रधान न्यायाधीश एचएल दत्तू को एक पत्र के साथ दुष्कर्म के दो वीडियो वाली पैन ड्राइव भेजी थी। ये वीडियो व्हॉट्सऐप पर वायरल हुए थे। कोर्ट ने पत्र पर स्वतः संज्ञान लेकर सीबीआई को जांच करने व दोषियों को पकड़ने का आदेश दिया था। [एजेंसी]