दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक व्यक्ति के खिलाफ बलात्कार के आरोपों को खारिज करने से इंकार कर दिया है जिसने कथित पीड़िता से अब शादी कर ली है। अदालत का मानना है कि यह ‘‘समाज के खिलाफ अपराध’’ है। न्यायमूर्ति प्रतिभा रानी ने एक व्यक्ति की याचिका पर आदेश पारित किया जिसने एक महिला से बार-बार बलात्कार करने, उसे चोट पहुंचाने और उसे आपराधिक धमकी देने के लिए दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की। अदालत ने कहा, ‘‘कानून के मुताबिक बलात्कार के आरोपों में दर्ज प्राथमिकी पर होने वाली कार्रवाई को सीआरपीसी के तहत इस अदालत के शक्तियों का पालन करते हुए नहीं रोका जा सकता, भले ही व्यक्ति ने शिकायतकर्ता महिला से शादी कर ली है क्योंकि यह समाज के खिलाफ अपराध है।’’
आरोपी 20 मई से अंतरिम जमानत पर है। उसने उच्च न्यायालय से अपील की थी कि इस आधार पर उसके खिलाफ मामले को रद्द कर दे कि महिला और उसके बीच शुरू से ही सहमति से शारीरिक संबंध बने और उन्होंने इस वर्ष मई में शादी कर ली। उसने कहा कि नवम्बर 2016 में दर्ज मामला महत्वहीन है और गलतफहमी के कारण दर्ज हुआ है इसलिए इसे खारिज किया जाए। अभियोजन पक्ष के मुताबिक दोनों के बीच 2005 से संबंध रहे।
बहरहाल जाति अलग होने के कारण परिजन इस संबंध के खिलाफ थे जिसके बाद व्यक्ति ने जुलाई 2012 में किसी और से शादी कर ली। बाद में 2015 में उसने अपनी पत्नी को तलाक दिया और फिर महिला के करीब आ गया। उसने महिला को शादी का वादा कर उससे फिर से शारीरिक संबंध बना लिए लेकिन वह एक बार फिर मुकर गया जिसके बाद महिला ने उसके खिलाफ बलात्कार के आरोप लगाए।
दिल्ली की एक अदालत ने चौदह साल के ‘‘मानसिक रूप से कमजोर’’ लड़के के साथ बार बार अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के दोषी एक व्यक्ति को दस साल की सजा सुनाई। अदालत ने लड़के की गवाही पर भरोसा करते हुए यह फैसला सुनाया। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ए के सरपाल ने दिल्ली विधिक सेवा प्राधिकरण को निर्देश दिया कि व्यक्ति द्वारा बार बार किये गये अपराध से मानसिक यातनाओं के शिकार पीड़ित को 50 हजार रूपये का मुआवजा दिया जाए। अदालत ने दिल्ली के निवासी 30 साल के दिनेश को दस साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई।