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Thursday, March 28, 2024

यात्रा वृतांत : रॉयल सिंबल ऑफ़ अवध और लखनऊ का ऐतिहासिक पक्का पुल

चलिए अब आप को लखनऊ की सैर कराते हैं। इस सफर में हमारे साथ हम सफर बने तेज़ न्यूज़ नेटवर्क के यूपी हेड शाश्वत तिवारी , बंसल न्यूज़ मध्यप्रदेश के शिवकरन बिरला और न्यूज़ नेशन न्यूज़ चैनल के ओम प्रकाश जी। हमारा सफर शुरू होता हैं गोमती नदी के एक किनारे से। लखनऊ की जीवनदायनी नदी “गोमती” के दोनों किनारों को जोड़ता हुआ ब्रिटिश काल में बना “पक्का पुल” जिसे आयरन ब्रिज व लालपुल भी कहा जाता है।

लखनऊ नजाकत और अदब का शहर कहा जाता हैं। यहाँ लंबे समय से नवाबों की रियासत रही आज भी नवाबों के वंशजो को वजीफा मिलता हैं। यूँ तो यहां पहले से ही लोग रहते चले आ रहे हैं लेकिन इतिहासकारों मानना हैं कि लखनऊ को बसाने और सवारने में नवाबों का सबसे ज्यादा योगदान रहा हैं। बात जब लखनऊ कीहो रही हैं तो “अवध” का जीकर होना भी जरुरी हैं। अवध फ़ारसी भाषा का शब्द हैं। हालांकि कुछ लोगों का मानना हैं कि “अवध” शब्द अयोध्या से निकला है।

वतर्मान उत्तर प्रदेश का यह भाग “कोशल” कहलाता था। राजा दशरथ यहाँ के राजा थे और अयोध्या उनकी राजधानी थी। बाद में इसको जीतकर नंदों और मौर्यों ने मगध राज्य का अंग बना लिया। चौथी शताब्दी में अवध गुप्त साम्राज्य का और सातवीं में हर्षवर्धन के साम्राज्य का अंग बना। नवीं शताब्दी में गुर्जर-प्रतिहारों ने इसे अपने साम्राज्य में मिला लिया। सन् 1192 में शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी के एक सहायक ने अवध को जीता जिसके बाद यहाँ मुसलमान आ कर बसने लगे। इतिहासकार बताते हैं कि ‘सआदत ख़ाँ बुरहानुलमुल्क’ अवध के स्वतन्त्र राज्य का संस्थापक था। 1720 से 1722 ई. तक उसने आगरा के सूबेदार के पद पर कार्य किया। 1722 ई. में सम्राट मुहम्मदशाह ने उसे अवध का सूबेदार नियुक्त किया, जहाँ बाद में इसने मुग़ल साम्राज्य से अलग स्वतन्त्र अवध राज्य की स्थापना की।

सआदत ख़ाँ की मुत्यु के बाद सम्राट मुहम्मदशाह ने सआदत ख़ाँ के भतीजे एवं दामाद ‘सफ़दरजंग’ को अवध की नवाबी प्रदान की। 1748 ई. में मुग़ल सम्राट ने उसे अपना वज़ीर बनाया और इसके साथ ही उसे इलाहाबाद का भी प्रांत दे दिया गया। उसने मराठों के विरुद्ध एक लड़ाई लड़ी तथा हिन्दू एवं मुसलमानों में कोई भेद न करते हुए दोनों को बराबर महत्व दिया। उसने अपनी सरकार में महाराज ‘नवाबराय’ को उच्च पद प्रदान किया। 1754 ई. में शुजाउद्दौला अवध का नवाब एवं सम्राट का वज़ीर बना। 1775 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। शुजाउद्दौला के बाद ‘आसफ़उद्दौला’ (1775-95 ई.) अवध का शासक बना। उसने अपनी राजधानी फैजाबाद से लखनऊ स्थानान्तरित की। 1819 ई. में इस वंश के सातवें शासक सआदत ख़ान ने अवध के राजा की उपाधि ग्रहण की। अवध के स्वतंत्र शासकों की अंतिम कड़ी व अन्तिम शासक ‘वाजिद अलीशाह’ था। 1856 ई. में लॉर्ड डलहौजी ने अवध को ब्रिटिश शासन के अधीन कर लिया। 1902 ई. में आगरा और अवध को मिलाकर ‘संयुक्त प्रांत आगरा व अवध’ बनाया गया। भारत की स्वतंत्रता के बाद इस प्रांत का नाम “उत्तर प्रदेश” पड़ा।

अवध के नवाबों के शासनकाल में यहाँ मुस्लिम संस्कृति का पर्याप्त प्रसार हुआ। उन्होंने अनेक मस्जिदों , मंदिरों और भवनों का निर्माण किया, जो आज भी लखनऊ एवं आज पास के क्षेत्र में आकर्षण का केंद्र है । जब अवध का निर्माण हुआ तो अवध का अपना एक सिम्बॉल भी बना जिसमें दो मछलियां हैं जिनका मुँह ऊपर की तरफ हैं और इस में एक ताज, ध्वज जैसे चिन्ह बने हुए हैं। आज भी उत्तर प्रदेश सरकार का जो सिंबल हैं उनमें अवध की निशानियाँ मिलती हैं।

चलिए अब आप को लखनऊ की सैर कराते हैं। इस सफर में हमारे साथ हम सफर बने तेज़ न्यूज़ नेटवर्क के यूपी हेड शाश्वत तिवारी , बंसल न्यूज़ मध्यप्रदेश के शिवकरन बिरला और न्यूज़ नेशन न्यूज़ चैनल के ओम प्रकाश पवार जी। हमारा सफर शुरू होता हैं गोमती नदी के एक किनारे से। लखनऊ की जीवनदायनी नदी “गोमती” के दोनों किनारों को जोड़ता हुआ ब्रिटिश काल में बना “पक्का पुल” जिसे आयरन ब्रिज व लालपुल भी कहा जाता है। लखनऊ अदबो तमीज़ और भव्यता से भरा है, यह अपनी खूबसूरत पुरानी इमारतों, स्मारकों, पुराने मकबरे, ब्रिटिश वास्तुकला आ ने करवाया था। यह पुल उस समय पत्थरों का बना हुआ था और शाही पुल के नाम से जाना जाता था।

अंग्रेजों ने जब अवध की संभाला तो उन्होंने पुल को कमज़ोर बताया। उनका मानना था कि सेना तथा लोगों की आवाजाही और तोपों के आने-जाने से ये पुल कमज़ोर हो गया है। और फिर 1911 में नवाबी पक्के पुल को अंग्रेजों ने पूरी तरह से तोड़ दिया जिसके बाद नए पुल का निर्माण कार्य शुरू किया गया। यह पुल जब बन कर तैयार हो गया तो इसका उद्घाटन तत्कालीन “गवर्नर लार्ड हार्डिंग” ने किया।

आज लगभग 100 बरस बीत जाने के बाद भी इसकी शानोशौकत में कमी नहीं आई हैं। इसका एक सिरा नए लखनऊ की तरफ जोड़ता हैं तो दूसरा सिरा ऐतिहासिक “टीलेवाली मस्जिद” की और जा कर खुलता हैं। बस यूँ समझ लीजिए यही वो रास्ता हैं जो आप को खूबसूरत पुरानी इमारतों, स्मारकों, पुराने मकबरे और नवाबी शान से भी जोड़ देता हैं। इस पुल से सिनेमा भी अछूता नहीं रहा। यहाँ कई बड़ी और ऐतिहासिक फ़िल्मो की शूटिंग हुई है। 15 जून 2001 को रिलीज हुए भारतीय सिनेमा की सनी देओल अभिनीत मशहूर फिल्म ” ग़दर एक प्रेम कथा” का एक हिस्सा इसी पुल पर शूट किया गया हैं।

अगली क़िस्त अगले अंक में …

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