अमेठी: मजदूर जिन्हें हम श्रमिक, मेहनतकश, लेबर आदि कई नामों से संबोधित करते हैं सही मायनों में बदलाव मजदूरों के दम पर ही संभव हुआ है। इतिहास गवाह है कि देश ही नहीं दुनिया में और दुनिया ही नहीं पूरी मानव सभ्यता में विकास का पहिया जितना घूमा है वह मजदूरों के दम पर ही संभव हुआ है। 1 मई दुनिया भर के मेहनतकशों के दिन के रूप में मनाया जाता है। दरअसल यह मजदूरों के उस संघर्ष की याद दिलाता है जिन्होंने कर्म करने साथ-साथ उसके फल का हिसाब मांगा। बेहिसाब कर्म पर अंकुश लगाने और सम्मानजनक जीवन जीने की मांग की। यह अपने आप में एक बड़ा बदलाव था। मई दिवस के बहाने आइये जानते हैं दुनिया के चें जमकर मजदूरों के संघर्ष के बारे में।
सुबह से लेकर शाम तक हमारी दिनचर्या में हमें घर से लेकर दफ्तर तक सफर में, गांव से लेकर खेत तक अनेक श्रमिकों से वास्ता होता होगा। मजदूरों की मेहनतकशों की कौम एक ऐसी कौम है जिसके खून-पसीने की बू कंकरीट के इन जंगलों से लेकर खेत खलिहानों में पैदा होने वाले अन्न में घुली होती है। हाड़ तोड़ मेहनत करने वाले मजदूर तो आज भी भले ही अज्ञानता और परिस्थितियों से मजबूर होकर 12-12, 14-14 घंटे काम करता हो लेकिन पढ़े लिखे मजदूर दफ्तरों में जो 8 घंटे बिताते हैं वह दुनिया के मजदूरों के संघर्ष की बदौलत ही संभव हो पाया है। इस संघर्ष के विजय दिवस को मनाने की शुरुआत ही अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में लगभग 121 साल पहले 1 मई 1886 को अमेरिका में हुई।
संकट में मजदूरों के संघर्ष-
महात्मा गांधी कहते थे कि किसी भी देश का विकास उस देश के मेहनतकश मजदूरों और किसानों पर निर्भर करता है। अब देश का विकास तो धड़ल्ले से हो रहा है लेकिन देश के मजदूर आज भी बदहाली में जीवन बसर करने को मजबूर हैं। कहने को तो मजदूरों के संघर्ष आज भी होते हैं लेकिन उनमें वो धार नज़र नहीं आती। आज फिर पूंजीपति वर्ग मेहनतकश के शोषण से मोटा मुनाफा कमाने में जुटा है। नये-नये कानून पारित कर मजदूरों को संगठित होने पर पांबदियां लगाई जाने लगी हैं। आंदोलनों को तोड़ने के लिये साम दाम दंड भेद जितने भी हथियार अपनाये जाने चाहियें अपनाये जा रहे हैं। मजदूर भी खेमों में बंटा है जिस कारण उसकी ताकत कमजोर हुई है। जहां मजदूर संगठित हैं वहां फिर भी वे अपने हकों के लिये आवाज़ उठा लेते हैं लेकिन असंगठित क्षेत्र के मजदूर तो शोषण के लिये अभिशप्त हैं।
एक नज़र यूपी में मजदूरों पर-
यूपी में लगभग हर क्षेत्र में बड़ी संख्या में स्थानीय और प्रवासी मजदूर काम करते हैं। भवन निर्माण से खेतों में बिजाई कटाई तक, कारखानों से लेकर ईंट भट्ठा उद्योग तक। हर वस्तु के दाम लगातार बढ़ रहे हैं लेकिन मजदूर यदि अपने मेहनताने को बढ़ाने की कहते हैं तो सबकी भौंहे तन जाती हैं यदि चार दिन काम छोड़ना पड़ जाये तो मजदूरों को खाने के लाले पड़ जाते हैं आज भी ये मजदूर अपनी मेहनत के नहीं मालिक के रहम पर गुजर बसर करने को मजबूर हैं यही हमारे दुनिया को बदलने वाले असली मजदूर हैं।
अमेठी के श्रमिको ने साझा किए अपने हालात-
ऐ भाई कितने दिनों को काम है, अब इतनी गर्मी है तो मजदूरी भी ठीक दो। इत तरह की बातें सोमवार को मजदूर दिवस होने के बाद भी मुसाफिरखाना और अमेठी के रोड पर लगभग दस की संख्या में खड़े मजदूर कर रहे थे जिनके लिए यह मजदूर दिवस बेमानी सा है। रोज की तरह इस दिन भी वह उधर से गुजरने वाले हर शख्स से काम पर ले चलने की मिन्नतें कर मजदूर दिवस पर भी दिखे।
एक मई को हर साल देश में मजदूर दिवस यानी मजदूरों का दिन के रूप में मनाया जाता है। पर सैकड़ो की संख्या में अमेठी की सड़को पर सुबह सुबह आ जाने वाले मजदूरों को सोमवार को यानी एक मई को पता तक नहीं कि आज मजदूर दिवस है इतना ही नहीं और तो और उनके हिमायती कई सगंठन है पर किसी ने भी उनको याद तक नहीं दिलाया कि आज उनको दिन है और कई जगहों पर उनके शोषण, बदहाली और सुधार पर भाषण दिए जाएगें।
रोज की ही तरह सोमवार को भी यह मजदूर अपनी दहिाड़ी तय करने की मशक्कत करते रहे जिसकी दिहाड़ी तय हो गई तो वह काम पर चला गया और जिसकी नहीं हुई वह मायूस होकर अपने घर लौट गया।
मजदूर दिवस के बारे में पूछे जाने पर एक मजदूर ने कहा कि उन लोगों को फर्क नहीं पड़ता कि आज कौन सा दिन है फर्क पड़ता है तो काम न मिलने पर कि मासूस होकर घर जाएगें तो घर पर चूल्हा कैसे जलेगा जबकि सन्तोष निवासी मुसाफिरखाना तहसील मोहल्ला ने कहा कि मजदूरों की बदहाली, शोषण और सुधार पर कौन क्या करता है इससे उस मजदूरों पर कोई फर्क नहीं पड़ता। उधर मुकेश निवासी निवासी रंजीतपुर ने कहा कि उनको लोगों को दिहाड़ी ठीक मिल जाए बस हर रोज मजदूर दिवस है।
मजदूर दिवस मनाएगें तो घर का खर्चा कौन उठाएगा। हम लोग रोज कमाने और रोज खाने वाले इंसान है। मजदूरों की बातों से कहीं से भी नहीं लगा कि उन लोगों को इस दिवस से कोई दिलचस्पी है। सभी अपने अपने काम के बारे में बाते करते है और फिर बतियाने लगते हैं
रिपोर्ट@ राम मिश्रा