लेखिका शोभा डे ने सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (सीबीएफसी) के चेयरमैन पहलाज निहलानी को खुली चुनौती देते हुए कहा है कि वो “गाय”, “गुजरात”, “दंगा” और “हिंदुत्व” जैसे शब्द बोलेंगी और उन्हें जो करना हो कर लें। शोभा डे हाल ही में सेंसर द्वारा एक डाक्यूमेंट्री में नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन द्वारा बोले गए इन शब्दों को बीप करने की शर्त पर सीबीएफसी प्रमाणपत्र देने की बात कही थी।
शोभा डे ने एनडीटीवी पर लिखे ब्लॉग में कहा है कि “उसका चाहे जो भी नाम हो मैं उसे खुला खत नहीं लिखने जा रही। मैं बस इतना कहना चाहती हूं कि मैं गाय, दंगा, गुजरात, हिंदुत्व, हिंदू राष्ट्र जैसे शब्दों को बोलने का अधिकार अपने पास रखूंगी। और मेरा जब, जैसे, जहां और जिस क्रम में उन्हें बोलने का मन करेगा मैं बोलूंगी। क्या करोगे आप?”
शोभा डे ने लिखा है, “भारतीय बहस करना पसंद करते हैं और हम हमेशा बहस करते हैं। हम छोटी मोटी अहमकाना बातों पर बहस करते हैं। ये हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और रहेगा। समझ गए ना, पहलाजजी? आप भी बहस करो। आपको किसने रोका है? बहसबाजी की संस्कृति की एक शानदार चीज है लेकिन आजकल विलप्तप्राय है। जब अमर्त्य सेन ने ये बहसतलब किताब लिखी तो उम्मीद के अनुरूप ही उस पर काफी बहस हुई। किताब का मूल सार यही था!” शोभा डे ने लिखा है कि कुछ लोग अमर्त्य सेन पर चाहे जो भी आरोप लगा लें वो इतिहास नहीं बदल सकते, खासकर पहलाज निहलानी।
सीबीएफसी ने कोलकाता के एक अर्थशास्त्री सुमन घोष के वृत्तचित्र (डॉक्यूमेंट्री) “द आर्ग्यूमेंटेटिव इंडियन” में अमर्त्य सेन द्वारा कहे गए “गुजरात”, “हिन्दू भारत”, “गाय” और “भारत का हिंदुत्ववादी दृष्टिकोण” जैसे शब्दों को बीप करने (हटाने) के लिए कहा। घोष ने इस शर्त के साथ अपनी फिल्म के प्रदर्शन से इनकार कर दिया। वहीं अर्थशास्त्री अमर्त्य सेना ने मीडिया से कहा कि वो इस मुद्दे पर बहस करने के लिए तैयार हैं।
शोभा डे लिखा है कि भले ही डाक्यूमेंट्री में कोई किसी शब्द को म्यूट (चुप) करा दे लेकिन वो सच को नहीं दबा सकता। सच किसी का आज्ञाकारी नौकर नहीं होता। वो हमेशा खुले में आ जाता है ताकि सभी लोग उसे जान सकें और अपना निर्णय ले सके। शोभा ने लिखा है कि बीजेपी सीबीएफसी को बहस में ले आई है और उसका मानना है कि एक नोबेल विजेता भी जो चाहे वो नहीं कह सकता।